बचपन में हमें किसी ने बताया था कि तारे टूटते हैं तब जब उनके बीच का संतुलन बिगड़ जाए…वो एक दूसरे से सम्बद्ध होते हैं, कोई एक बल उन्हें बांधे रखता है। बल क्षीण हुआ, तारा टूट गया! अब मुझे नहीं पता कि क्या ये सत्य आज भी बना हुआ है या अगर ये झूठ है तो क्या इसे बोलकर आज भी जिज्ञासु बच्चों को चुप कराया जा सकता है?
क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। कोई दीवार को ठोंकता है तो वही दीवार उसे भी उतनी ही ताक़त से ठोंकती है। आसमान की कोई परत टूटती है तो आसमान की और परतें व धरती को भी पता होता है! लेकिन क्या उसे थामा जा सकता है?
जितनी समझदारी भारत की विधि संहिता आपको दे चुकी है, आप समझ सकते हैं कि ये कैसे होता है! भारत में जहां कुछ भी होना आसान नहीं है, वहाँ कुछ होना, इतना सरल भी नहीं है कि औचक कुछ हो जाये और लोग पलक भी न झपका पाएं! ये वही जगह है जहाँ एक कागज को, एक बयान को, एक अपराध को, या एक निरपराध को करवाई से, सजा से दो चार होते-होते उसकी दूधमुंही बच्ची, विवाह के लायक हो जाती है, वहां पलक की झपकन की क्या बिसात!
कुछ लोग कहते हैं हमारे देश की व्यवस्थाओं के लिए, ‘आल इज वेल’… मैं इनसे सहमत नहीं हूँ! कुछ निराशावादी लोग कहते हैं, ‘आल इन हेल!’ मैं इनसे भी सहमत नहीं हूँ! भारत में सब चयन या चॉइस का खेल है। कुछ मुद्दों पर कुछ नहीं होता और कुछ मुद्दों को यमपाश भी नहीं रोक सकता! तभी तो देश बरकरार है! सेलेक्टिव रूप से सब होता है!
इस देश में सरकार हरेक की सहमति से बनती है। कोई सामुदायिक काम भी सबको विश्वास में रखकर होता है! चलिए! सबका S, सबका V, सबका V, सबका P की थिओरी आप न मानें लेकिन ये तो मानते हैं कि जब तक कोई एक भी पक्ष उंगली खड़ी रखे, काम नहीं होता (सभी का केचअप शामिल है यहां की मैगी में) और इसके चौवालीस दृष्टांत हैं! ऐसे में काम करने के लिए किसी को, किसी विधि, चुप तो जरूर करवाया गया होगा।
इसलिए जब भी कोई पेड़ गिरे धरती पर, तो समझिए कि हवा का प्रयास ही नहीं, धरती की सहमति भी शामिल है दुर्घटना में!
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