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केसरिया भारत: राष्ट्रीयता के पक्के रंगकेसरिया भारत: राष्ट्रीयता के पक्के रंग

किताबें क्या कह गईं

सीता-हरण के पूर्व

वाल्मिकीय रामायण से उद्धृत
लक्ष्मण जी के ऐसा कहने पर सीता माता रोने लगीं। उन्होने कहा – लक्ष्मण! मैं श्री राम से बिछुड़ जाने पर गोदावरी नदी में समा जाऊँगी अथवा गले में फांसी लगा लूँगी अथवा पर्वत के दुर्गम शिखर पर चढ़कर वहाँ से अपने शरीर को गिरा दूँगी या तीव्र विषपान कर लूँगी अथवा जलती आग में प्रवेश आकर जाऊँगी परंतु श्री राम के अलावा किसी पुरुष का कदापि स्पर्श नहीं करूंगी!

यह प्रतिज्ञा करने के बाद रोती हुई सीता माता दुखी होकर अपने दोनों हाथों से अपने पेट और छाती पर आघात करने लगीं।

        

सर्वत्र राक्षसों की लाशें ही लाशें थी…भीषण रक्तपात! जनस्थान के आँगन में धारशायी होंकर गिरा था खर! अकंपन ने बिलकुल देर नहीं की, बहुत उतावली में था वो! उसे शीघ्र-अतिशीघ्र राक्षसराज रावण के पास जाकर ये वृतांत सुनाना था। वो एक ऐसे हार की खबर लेकर जा रहा था जिसकी कोई स्वप्न में भी अपेक्षा नहीं करता। जनस्थान राक्षसों से विहीन हो गया है! दुखद है! अविश्वासनीय है! पर सत्य है!

अकंपन के मुख से वृतांत सुनने के बाद दशानन रावण क्रोध से पागल हो गया। उसकी बड़ी-बड़ी आँखें अंगारों के समान लाल-लाल हो गईं। ऐसा लगता था कि उसकी आँखें सामने पड़ने वाली हर चीज को झुलसा देंगी, निगल जाएंगी!

-वो कौन है, जो मृत्यु के मुख में जाना चाहता है? कौन है जिसने जनस्थान का ये हाल कर दिया है? –

अकंपन काँप उठा। उसने हाथ जोड़कर पहले तो रावण से अभय मांगी।

उसने रावण को श्री राम का परिचय दिया। उनके बल, पराक्रम और व्यक्तित्व का वर्णन किया। उसने बताया कि किस तरह खर-दूषण का वध किया गया।

-क्या इसमें इंद्र आदि देवताओं का भी हाथ था?

अकंपन ने बताया कि उनके साथ न कोई देवता था, न कोई महात्मा न कोई मुनि! वहाँ थे तो सिर्फ श्री राम और राक्षसों को खाते, उनके सर्प से वाण! अकंपन ने बताया कि एक अकेले श्री राम ही थे जिनहोने अपने बल पर पूरे जनस्थान को उजाड़ डाला।

रावण तुरंत क्रोध में भरकर खड़ा हुआ – मैं अभी ही राम और लक्ष्मण दोनों का प्राणान्त करने के लिए जनस्थान जाऊंगा।

अकंपन ने दशानन को श्री राम के बल-पराक्रम का पूरा-पूरा वर्णन किया और कहा – सम्पूर्ण देवता और असुर मिलकर भी श्री राम का वध नहीं कर सकते।

लेकिन अकंपन के पास एक उपाय था –श्री राम की पत्नी सीता जो स्त्रियॉं में एक रत्न है, उसका अपहरण कर लें। सीता के वियोग में श्री राम भी जीवित नहीं बचेंगे।

रावण ने सीता का जो वर्णन सुना और अकंपन का उपाय जाना, वो उसे भला लगा।

रावण ने कहा कि वो अगली सुबह ही सारथी के साथ जाएगा और सीता को प्रसन्नपूर्वक ले आएगा।

                 रावण मारीच से मिलने पहुंचा। मारीच ने उसका यथोचित सत्कार किया। मारीच ने उसके उतावलेपन को देखते हुए पूछा कि उसके राज्य में सब कुछ ठीक तो है?

रावण ने खर-दूषण के मृत्यु का समाचार सुनाया और कहा कि वो श्री राम से प्रतिशोध लेना चाहता है।

मारीच ने कहा कि मित्र के रूप में वो कौन सा शत्रु है जिसने रावण को सीता के हरण की सलाह दी है? कौन वो हितचिंतक है जो हित के रूप में उसका अहित करना चाहता है। उसने कहा कि जो भी रावण को इस काम के लिए प्रोत्साहित कर रहा है वो निश्चय ही रावण के सोते समय उसके मस्तक पर लात मारना चाहता है।

मारीच ने उसे रोकते हुए कहा कि राम पाताल तक फैले एक महासागर हैं। उससे युद्ध रावण के हित में नहीं है। इसलिए वो अपनी पूरी में अपने स्त्रियॉं के साथ रमण करे और श्री राम को अपनी पत्नी के साथ वन में विहार करने दे।

    रावण उसकी बात सुनकर वापस लौट गया।

इसके बाद शूर्पणखा, जिसके नाक कान काटकर लक्ष्मण जी ने कुरूप कर दिया था, वो रावण के समक्ष अपनी दुर्दशा दिखाने आई। श्री राम से तिरस्कार पाकर वो बहुत दुखी थी। उसने विषय-भोगों में लगे रावण से कहा कि तुम्हारे विषय-भोगों के रास्ते में एक बड़ी बाधा उत्पन्न हो गयी थी, जिसकी जानकारी उसे नहीं थी। शूर्पणखा ने कहा कि वो समझती है कि रावण मूर्ख और गंवार मंत्रियों से घिरा हुआ है। तभी जनस्थान के उजाड़ जाने के बाद भी उसे इस का पता नहीं है।

उसने कहा कि अकेले राम ने चौदह हजार की सेना को यमलोक पहुंचा दिया है जबकि इधर रावण लोभ और प्रमाद में पड़कर अपने राज्य पर आए संकटों से अनभिज्ञ है।

शूर्पणखा के कटु शब्द सुनने के बाद रावण ने कुपित होकर उसके कुरूप होने का कारण पूछा।

अब जाकर शूर्पणखा ने सारा वृतांत कहा कि किस तरह तीन घड़ी के भीतर ही श्री राम ने चौदह हजार सैनिकों की सेना तो खत्म कर दिया। उसने लक्ष्मण जी और सीता का परिचय दिया। शूर्पणखा ने कहा कि वो जब सीता को रावण की भार्या बनाने को उद्यत हुई तब क्रूर लक्ष्मण ने उसकी नाक और कान काट दिये।

         उससे प्रेरणा पाने के बाद रावण दूसरी बार फिर से मारीच से मिलने गया।

रावण ने फिर से खर-दूषण का प्रसंग मारीच को सुनाया कि किस तरह जनस्थान में निवास करने वाले सारे राक्षसों को उस श्री राम ने मार गिराया है जिसे उनके पिता ने कुपित होकर पत्नी सहित घर से निकाल दिया था। उस राम ने एक भी कटु वचन बोलने की जगह सीधे युद्ध में प्रवृत होकर वाण छोडने शुरू कर दिये और दंडकारण्य को धर्म-कर्म करने वालों के लिए सुगम बना दिया। उस राम ने ही शूर्पणखा के नाक-कान काटकर उसका रूप बिगाड़ दिया है।

रावण ने कहा कि इसी कारण से वो सीता का अपहरण करना चाहता है। इसके बाद रावण ने मारीच को सोने का मृग बन जाने की आज्ञा दी। उसने कहा कि उसे देखकर सीता निश्चित ही राम और लक्ष्मण को उसे पकड़ने भेजेगी। जैसे ही वो कुटी से दूर हो जाएँगे वैसे ही रावण सीता को सुखपूर्वक हर लेगा। इस घटना से राम दुखी और दुर्बल हो जाएँगे।

मारीच ने कहा कि सदा प्रिय बोलने वाले लोग हर जगह मिल जाते हैं पर अप्रिय होने पर भी हितकर बातें कहने और सुनने वाले दोनों दुर्लभ हैं। मारीच ने राक्षसों के कल्याण के लिए कि कहीं सीता रावण के जीवन का अंत करने के लिए तो उत्पन्न नहीं हुई है? उसने कहा कि जो राजा दुराचारी, स्वेछचारी और पापपूर्ण विचार रखने वाला और खोटी बुद्धि वाला होता है, वो अपने साथ अपने लोगों और राज्य के भी पतन का कारण बनता है।

मारीच ने बताया कि किस तरह पिता के वचन पालन के लिए श्री राम दंडाकारण्य आए। वो धर्म के मूर्तिमान स्वरूप हैं, साधु हैं, सत्यपराक्रमी हैं। उसने कहा की अगर रावण चाहता है तो रणभूमि में श्री राम के साथ युद्ध कर ले अथवा उन्हें क्षमा कर दे पर अगर उसे जीवित देखना चाहता है तो उसके सामने राम की चर्चा न करे।

इसके बाद भी अहंकार से भरे रावण ने मारीच को आज्ञा दी कि वो स्वर्णमय चर्म से युक्त चितकबरे रंग का मृग बन जाये। उसके सारे अंग में चांदी की सी सफ़ेद बूंदे हो। ये रूप धरकर उसे सीता के आगे विचरना था। जब सीता माता उसे देख लें फिर अपनी इच्छित दिशा में दूर जाकर श्री राम की आवाज में ‘हा सीते! हा लक्ष्मण’ पुकारे।

मारीच ने फिर से रावण को समझाने का प्रयास किया। लेकिन वो भी समझ रहा था कि रावण मानने वाला नहीं है। ऐसी स्थिति में लड़ते हुए श्री राम के हाथों मृत्यु ही उसे भली जान पड़ी। उसे ज्ञान था कि श्री राम के साथ पराक्रम दिखाकर कोई जीवित नहीं लौटता।

रावण और मारीच यान से उड़कर श्री राम के आश्रम पहुँचे। यहाँ रावण ने मारीच का हाथ अपने हाथ में लेकर उसे कहा कि अब उसे जल्दी ही वह कार्य कर लेना चाहिए जिसके लिए वो वहाँ गए हैं।

मारीच ने मृग का रूप धार लिया और उसके सींगों के ऊपर का भाग इंद्रनील नमक मणि से बने लगते थे। ऐसा ही सुंदर रूप बनाकर सीता को लुभाने के लिए, श्री राम के आश्रम के निकट घास चरने और विचरने लगा।

सीता उस समय फूल चुनने में लगी हुई थी, कनेल, अशोक और आम के वृक्षों को लांघती हुई वो उधर आ निकली। मृग पर नजर पड़ते ही सीता आश्चर्य से खिल उठी और बड़े प्यार से उसे देखने लगी।

इसके बाद वो अपनी पति श्री राम और देवर लक्ष्मण को हथियार लेकर आने के लिए बार-बार पुकारने लगी।

मृग को देखकर लक्ष्मण के मन में संदेह हुआ, वे श्री राम से बोले कि लगता है कि मृग का रूप धरकर मारीच राक्षस ही आया है। उन्होने कहा कि इस भूतल पर कहीं भी वैसा विचित्र रतनमय मृग नहीं है, अतः हो न हो वो माया ही है।

माता सीता की विचारशक्ति मारीच के छल से हर ली गयी थी। उन्होने मृग को लाने की बात की और कहा कि ये उनके मन-बहलाव के लिए रहेगा। यदि ये मृग जीते-जी श्री राम की पकड़ में आ जाये तो ये एक आश्चर्य की वस्तु होगी और सबके मन में विस्मय पैदा करेगा। वनवास की अवधि खत्म हो जाने के बाद ये मृग अंतःपुर की शोभा बढ़ाएगा। अगर ये जीते-जी न भी पकड़ा जा सका तो भी इसका चमड़ा बहुत ही सुंदर होगा। घास-फूस की चटाई पर इस मरे हुए मृग का चर्म बिछाकर वो इसपर श्री राम के साथ बैठना चाहती थी।

उन्होने कहा कि –यद्यपि स्वेछा से प्रेरित होकर अपने पति को ऐसा काम में लगाना या भयंकर स्वेच्छाचार है और साधयी स्त्रियॉं के लिए उचित नहीं माना गया है तथापि इस जन्तु के शरीर ने मेरे हृदय में विस्मय उत्पन्न कर दिया है। 

उस मृग को देखकर श्री राम का मन भी विस्मित हो गया था, उन्होने कहा कि विभिन्न प्रकार के रत्नों से विभूषित इस मृग के सुनहरे प्रभाव को देखकर किसी का भी मन विस्मित हो जाएगा। अगर ये मृग न भी हो तो राक्षसी माया ही हो, तो भी इसका अंत होना ही चाहिए। उन्होने कहा कि अगर ये मारीच ही है तो भी इसने अनेकानेक मुनियों की हत्या की है, ऐसे में इस क्रूर कर्म करने वाले मारीच का वध जरूरी है।

श्री राम ने लक्ष्मण को कहा कि वो अपने अस्त्र-शस्त्र और कवच आदि से सुसज्जित हो जाएँ और सावधानी से सीता की रक्षा करें।

इसपर लक्ष्मण जी ने कहा कि इस समय जो आवश्यक कर्तव्य है वह सीता की रक्षा है। इस मृग को वो ही मार लाएँगे या जीता पकड़ लाएँगे।

इसपर श्री राम ने खुद मृग के पीछे जाने की बात दुहराइ। उन्होने कहा कि वो जल्दी ही एक बाण से इस चितकबरे मृग को मार डालेंगे और उसका चमड़ा लेकर शीघ्र लौट आएंगे।

इसके बाद श्री राम ने सोने की मूठ वाली तलवार कमर में बांध ली और तीन स्तनों में झुके हुए अपने आभूषण स्वरूप धनुष और पीठ पर दो तरकस बांधकर वहाँ से चल पड़े।

वो मृग उस घने वन में पीछे की ओर देखता हुआ आगे की ओर भाग रहा था। कभी वो छलांग मारकर दूर चला जाता तो कभी इतना पास आ जाता कि हाथ से पकड़ने का लोभ हो। इस प्रकार वो मृग और उसका पीछा करते हुए श्री राम वन में बहुत दूर चले आए। बहुत लुकाछिपी होने के बाद श्री राम ने उसे मारने का निश्चय किया।

श्री राम के वाण ने मारीच का शरीर बेध दिया। उस चोट से व्याकुल होकर वो राक्षस ताड़ के बराबर उछलकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। वो गिरे-गिरे भयंकर गर्जना करने लगा। इसके बाद उसने श्री राम की आवाज में ‘हा सीते!’ ‘हा लक्ष्मण!’ पुकारना शुरू किया।

श्री राम को लगा कि जिस तरह इस राक्षस ने मरते-मरते सीता और लक्ष्मण को पुकारा है, ये सुनकर सीता की क्या गति होगी? ये सोचकर श्री राम के रोंगटे खड़े हो गए और वो तप के लिए उपयोग में आने योग्य फल-मूल आदि लेकर तत्काल जनस्थान के निकट पंचवटी में स्थित अपने आश्रम की ओर, बड़े उतावले हो चल पड़े।

                      इधर जैसे ही वो आर्तस्वर की पुकार सुनकर सीता माँ का हृदय बैठ गया। उन्होने तत्काल लक्ष्मण से कहा कि वो जाकर श्री राम की सुधि लें। उन्होने बड़े आर्तस्वर में उन लोगों को पुकारा है, निश्चय ही वो कोई संकट में आ गए हैं। जैसे कोई साँड सिंह के पंजे में फंस गया हो, उसी तरह वो किसी राक्षस के वश में पड़ गए हैं।

    लक्ष्मण जी सीता माता के ऐसा कहने के बाद भी श्री राम के आदेश का विचार करके कहीं नहीं गए।

उनके इस व्यवहार से सीता माता क्षुब्ध हो उठीं। उन्होने बड़ी कटु बातें बोलनी प्रारम्भ कर दी।

उन्होने कहा कि मित्र रूप में वो अपने भाई के शत्रु जान पड़ते हैं इसलिए संकट की अवस्था में भी वो अपने भाई के पास नहीं जा रहे हैं। उन्होने कहा कि लक्ष्मण उनपर अधिकार करने के लिए श्री राम का विनाश चाहते हैं। कदाचित लक्ष्मण जी के मन में उनके लिए लोभ हो गया है। श्री राम का सनक्त में पड़ना ही लक्ष्मण जी को प्रिय है। उंकेमन में अपने भाई के प्रति स्नेह नहीं है।

सीता माता ने कहा कि जो लक्ष्मण जी के सेव्य हैं, जिनकी रक्षा और सेवा करने के लिए वो वनवास में आए जब उनही के प्राण संकट में पड़ गए तो उनकी (सीता) की रक्षा करने से क्या होगा।

इन सब बातों को सुनकर लक्ष्मण जी बोले कि नाग, असुर, गंधर्व, देवता, दानव और राक्षस – ये सब मिलकर भी श्री राम को परास्त नहीं कर सकते। श्री राम युद्ध में अवध्य हैं। अतएव उन्हें ऐसी बातें नहीं सोचनी चाहिए। उन्होने सीता से कहा कि वो अपना हृदय शांत करें और संताप छोड़ दें।

उन्होने सीता को समझाते हुए कहा कि इस वन में प्राणियों पर हिंसा करने वाले और इस हिंसा में क्रीडा-विहार या मनोरंजन करने वाले राक्षस विभिन्न परकार की बोलियाँ बोलते हैं अतएव उन्हें चिंता त्याग देनी चाहिए।

ये सुनकर माता सीता की आँखें लाल हो गईं। उन्होने फिर से कटु वचन कहे।

-अनार्य! निर्दयी! क्रूर-कर्मा! कुलंगार! मैं तुझे खूब समझती हूँ! श्री राम किसी भारी विपत्ति में पड़ जाएँ यही तुझे प्रिय है।

उन्होने कहा कि लक्ष्मण क्रूर हैं और सदा छिपे हुए शत्रुओं के मन में इस तरह का पाप विचार होता है। संभवतः इसी लिए श्री राम को अकेले वन में आते देख सीता जी को प्राप्त करने के लिए वो अपने भाव को छिपाकर उनके पीछे भी अकेले चले आए हैं अथवा ये भी संभव है कि उन्हें भरत ने भेजा हो।     

सीता माता ने कहा कि वो लक्षमण और भरत का मनोरथ पूरा नहीं होने देंगी और नीलकमल के समान श्यामसुंदर कमलनयन श्री राम को पति रूप में पाकर किसी दूसरे क्षुद्र पुरुष की कामना नहीं करेंगी। वो निसंदेह लक्ष्मण जी के सामने अपने प्राण त्याग देंगी लेकिन श्री राम के बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकेंगी।

इस बात पर लक्ष्मण जी ने उनके आगे हाथ जोड़ लिए और कहा कि वो उनकी बात का जवाब नहीं दे सकते क्योंकि वो लक्ष्मण जी के लिए आरध्या हैं। उनकी बातें लक्ष्मण जी के कानों में तपाये लोहे की तरह लगता है, जो वो सह नहीं सकते। उन्होने कहा कि उस वन में विचरने वाले सभी जीव-जन्तु इस बात के साक्षी हैं कि न्यायपूर्ण बात कहने पर भी सीता ने उन्हें कैसी कठोर बातें कही हैं। निश्चय ही आज उनकी बुद्धि मारी गयी है और वो नष्ट होना चाहती हैं। उन्होने कहा कि धिक्कार है उनपर जो वो लक्ष्मण जी पर संदेह करती हैं।

लक्ष्मण जी ने कहा कि वन के सम्पूर्ण देवता उनकी रक्षा करें क्योंकि उस समय उनके सामने जो बड़े भयंकर अपशकुन प्रकट हो रहे थे, उन सब ने उन्हें संशय में डाल दिया था। उन्हें संदेह हो चला कि श्री राम के साथ वापस लौटकर क्या वो सीता माता को सुरक्षित देख पाएंगे?

लक्ष्मण जी के ऐसा कहने पर सीता माता रोने लगीं। उन्होने कहा – लक्ष्मण! मैं श्री राम से बिछुड़ जाने पर गोदावरी नदी में समा जाऊँगी अथवा गले में फांसी लगा लूँगी अथवा पर्वत के दुर्गम शिखर पर चढ़कर वहाँ से अपने शरीर को गिरा दूँगी या तीव्र विषपान कर लूँगी अथवा जलती आग में प्रवेश आकर जाऊँगी परंतु श्री राम के अलावा किसी पुरुष का कदापि स्पर्श नहीं करूंगी!

यह प्रतिज्ञा करने के बाद रोती हुई सीता माता दुखी होकर अपने दोनों हाथों से अपने पेट और छाती पर आघात करने लगीं।

लक्ष्मण जी ने मन ही मन उन्हें सांत्वना दी, उन्हें प्रणाम किया और बार-बार उनकी ओर देखते हुए श्री राम के पास चल पड़े।

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केवल सोद्देश्य रचनात्मकता / साहित्यिक समीक्षाएं व आलोचनाएँ। प्रस्तुति एवं Copyright © 2022 Mrityunjay Mishra