भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ लोगों को सत्य जानने से डराया गया, झूठ को कई बर्तनों में, कई रंगों में घोलकर, कई फ्लेवर में पिलाया गया। भारत में एक सच को छिपाने सौ झूठ बोले गए, उन सौ झूठों के महिमा-मंडन में प्रत्येक के ऊपर एक लाख झूठ बोले गए। भारत में झूठ की पढ़ाई-लिखाई, निराई-बोवाई करवाके, लुभावने झूठ से दूसरे लुभावने झूठ को लड़ाके एक झूठी व्यवस्था ही खड़ी कर दी गयी। बताया गया कि सत्य ही आपका बैरी है, सुबह के आंगन में ही कालिख गहरी है। सत्य अव्यवस्था का पोषक है, सत्य विनाश का द्योतक है, सत्य क्रंदन व आंसू पर अट्टहास का उद्घोषक है।
अपनी सच्चाई जानने के प्रति इतनी कुंठा, असुरक्षा और उदासीनता कहीं किसी समाज में देखने मे नहीं मिलती, जितनी भारत में मिलती है। एक भारतीय ही है जो हर उस चीज की छानबीन करता आया जो दिखे, जो न दिखे। आज का एक भारतीय ये भी नहीं जानता कि उसके और उसके पर्यावरण में कितनी गंध है और किस चीज की गंध है।
शिक्षा का ये नजारा था कि कला के छात्रों को बेकार घोषित कर दिया और वहीं विज्ञान के बच्चे ये तक नहीं पहचानने के काबिल हैं कि उनकी पढ़ाई के लिए उनके बाप ने जो करारे नोट उड़ाए थे, उसपर किसकी तस्वीर है! यहीं कुछ कलम के राक्षसों को पूरा मौका मिला, एकांत कमरा था उनके लिए समाज और सामाजिक विज्ञान। उन्होंने उसका पूरी बेदर्दी से दुष्कर्म किया। आज के ये बच्चे इस बात की कल्पना नहीं कर सकते कि दुनिया कैसी होती जो आज ऐसी है, उनके रगों में जिनका खून है, उनका चेहरा क्या होगा? ये पतन की पराकाष्ठा है।
भारत ही ऐसा देश है जहाँ लोगों से उसके बाप का नाम छिपाया गया और उसे यही सिखाया गया कि वो किस-किस विधि अपने आप से शर्मिंदा हो। वो इंसान जितना खुद को कोसता है उतना ही बाहरी दुनिया में प्रसिद्धि पाता है। वो जानता है कि उसे उसके होने का गर्व करने से ज्यादा शर्म करने के पैसे मिलेंगे। ये ठीक है कि भारतीय/धार्मिक कभी एक नहीं हुए पर क्या उन्हें एकता की सही अवधारणा और ऐक्य का सही प्रतिबिम्ब दिखाया गया। लोगों ने समझा कि जो वो हैं वो होकर मर जाने से बेहतर है कि वो कुछ और होकर जी लें।
भारतीयता और सनातनता को आज के युग में लाइव दिखाना जरूरी है। लोग कबतक अपनी पहचान से भागते रहेंगे। छुद्र हितों के लिए, छुद्र कारणों से हीनभावना पाले हुए लोग न सिर्फ अपना बुरा कर रहे हैं, बल्कि समाज नष्ट हो रहा है। आज धरती पर किती भूमि बची है जो रक्तरंजित न हो। आज कितने लोग धरती पर ऐसे हैं जो किसी अपराध के भुक्तभोगी या अपराध में संलिप्त न हो।
गलत आदर्शों पर, गलत प्रेरणा से, गलत उपकरणों के प्रयोग करके, गलत दिशा में, गलत मानसिकता और अंधाधुंध प्रयोग करते हुए हम आज वहां है जहां से कुछ हजार किलोमीटर पर अंधतमस और रौरव जैसे नरक जल रहे हैं। अगर अब जीना नहीं सीख सके तो विनाश के लिए तैयार रहिए। जब विध्वंस के बाद हम गिरेंगे तो फिर हमारी खुदाई भी होगी और अगर तब हमारी मौत को महिमा-मंडित किया गया तो कल्पना कीजिये आपको कितना बुरा लगेगा? आपकी आत्माएं भटकेगी अपनी पहचान और शांति पाने।
